आशुतोष जी महाराज।
Click To Share

देहरादून=  दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संस्थापक एवं संचालक गुरुदेव आशुतोष महाराज ने कहा कि संपूर्ण भारतवर्ष में ‘महा-शिवरात्रि’ का त्यौहार आस्था के महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन अमूमन तौर पर भक्त-श्रद्धालुगण बड़ी संख्या में शिवालयों में उमड़ते हैं और शिवलिंगों की धूप-दीप, बेलपत्र, दूध मिश्रित जल आदि नैवेद्य से विधिपूर्वक उपासना करते हैं। हर साल हम इसी तरह परम्परागत ढंग से, रीति-रिवाजों के साथ ‘महाशिवरात्रि’ मनाते हैं और हर्षित होते हैं। लेकिन इस उत्सव की धूमधाम में हम पर्व की सूक्ष्म और सच्ची धुन को नहीं सुन पाते। भगवान शिव और उनसे जुड़े हर पहलू में एक गूढ़ तत्त्व है, एक मार्मिक प्रेरणा है, जो बहिर्जगत नहीं, अंतर्जगत से हमें जोड़ती है। महाशिवरात्रि का पर्व हमारे समक्ष मूल प्रश्न लेकर आता है- देवाधिदेव भगवान शंकर कहाँ मिलेंगे? शिव मंदिर में? शिवालयों में? अमरनाथ पर? काशी में? अपने भोले बाबा को पाने के लिए कहाँ जाएँ? क्या करें? क्या यह संभव भी है?
इस प्रश्न का उत्तर हमें भगवान शिव के सहस्र नामों में से कुछ विशेष दिव्य नामों में निहित दिव्य संकेतों से मिलता है। कोटिरुद्रसंहिता के अध्याय-35 में सूत जी समझाते हैं कि भगवान शिव के ‘शैवं नामसहस्र कम्’- हजारों नाम हैं। उन्हीं में से एक है- ‘वेद्यः’ अर्थात् जानने योग्य। अन्य है- ‘विज्ञेयः’ अर्थात् जिन्हें जाना जा सकता है। भाव निःसन्देह भगवान शिव को जानना अर्थात् पाना संभव है। अब प्रश्न उठता है कि उन्हें किस प्रकार जाना जा सकता है। उनका एक नाम है- ‘ज्ञानगम्यः’ अर्थात् जिन्हें ‘ज्ञान’ के द्वारा ही जाना या अनुभव किया जा सकता है। शिव पुराण की रुद्रसंहिता के अध्याय-43 में स्वयं महादेव शंकर प्रजापति दक्ष से कहते हैं- ‘वेद-वदांत के पारगामी विद्वान ज्ञान के द्वारा मुझे जान सकते हैं। जिनकी बुद्धि मंद है, वे ही मुझे ज्ञान के बिना पाने का प्रयत्न करते हैं।’ यहाँ भगवान शिव ‘ज्ञान’ कहकर ‘ब्रह्मज्ञान’ या ‘आत्मज्ञान’ को संबोधित कर रहे हैं।
ब्रह्मज्ञान या आत्म-ज्ञान की दीक्षा पाने पर महादेव एक साधक के समक्ष प्रकट हो जाते हैं। इसलिए शिव नामों की श्रृंखला में ये नाम भी वर्णित हैं- ‘ध्येयः’, ‘ध्यानाधारः’- जो ध्यान के आधार हैं, माने जिन पर एक साधक ध्यान केन्द्रित कर सकता हैय ‘समाधिवेद्य’- जिन्हें साधक समाधि या गहन ध्यान की अवस्था में देखता व जानता है। ब्रह्मज्ञान से भगवान का ध्येय स्वरूप साधक के अंतर्हृदय कमल में प्रकट होता है।

By admin