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मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने शुक्रवार को सचिवालय में राज्य की पारिस्थितिकी को अर्थव्यवस्था से जोड़ने के लिये अधिसूचित जीईपी के आंकलन की दिशा में सकल पर्यावरण उत्पाद सूचकांक ( GEP Index ) का उद्घाटन करने के पश्चात सचिवालय स्थित मीडिया सेंटर में आयोजित प्रेस वार्ता में बताया कि उत्तराखण्ड पर्यावरण एवं जैव विविधता की दृष्टि से सम्पन्न राज्य है एवं राज्य के पास सभी तरह का पारिस्थितिकी तंत्र उपलब्ध है। हमारे पास हिमनदों के साथ नदियाँ घने जंगल से लेकर तराई घाटियां एवं हर तरह की भौगोलिक परिस्थितियाँ मौजूद हैं।

उन्होंने कहा कि जीईपी सूचकांक का आंकलन मुख्य रूप से जल गुणवत्ता, वायु गुणवत्ता, रोपित पेड़-पौधों की संख्या, जैविक मिट्टी के क्षेत्रफल की माप के आधार पर किया गया है। विकासपरक योजनाओं का सीधा असर इन्हीं चार घटकों पर मुख्य रूप से पड़ता है। जीईपी सूचकांक एक इंडिकेटर की तरह कार्य करेगा जिससे विकासपरक योजनाओं से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का आंकलन किया जा सकेगा। अगर इसमें सुधार होता है तो जीईपी सूचकांक में वृद्धि देखने को मिलती है, जिसमें कहा जा सकता है कि हमारा सिस्टम पर्यावरण के अनुकूल है और विकासपरक गतिविधियों के बावजूद भी स्थिर है और उसमें सुधार हो रहा है। और यदि हमारी पर्यावरण गुणवत्ता में नकारात्मकता दिखायी दे रही है तो जीईपी सूचकांक में गिरावट देखने को मिलती है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि पर्यावरण के परिपेक्ष्य में राज्य द्वारा किये गये प्रयासों को राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है तथा नीति आयोग द्वारा विकसित सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स इंडेक्स में उत्तराखण्ड द्वारा वर्ष 2023-24 में प्रथम स्थान प्राप्त किया है, इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि राज्य में विकासपरक योजनायें व औद्योगिक गतिविधियों के प्रसार के बावजूद भी राज्य अपने पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने में सफल हुआ है, उन्होंने कहा कि इससे इस अवधारणा को भी बल मिलता है कि राज्य सरकार पारिस्थितिकी और आर्थिकी में सामंजस्य बनाये रखे हुए है। इसी कड़ी में जीईपी सूचकांक अगला कदम है एवं इसके आगे जीईपी को किस प्रकार जीडीपी के साथ जोड़ा जायेइस विषय पर कार्य किया जा रहा है।
उत्तराखण्ड जंगल, ताजे पानी, ग्लेशियरों से समृद्ध है जो राज्य को पारिस्थितिकी तंत्र सेवा का एक समृद्ध बैंक बनाता है। उत्तराखण्ड की जीडीपी वर्ष 2023-24 हेतु 3.33 लाख करोड़ है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि सकल पर्यावरण उत्पाद सभी पर्यावरणीय सेवाओं के मौद्रिक स्थिति को सकल घरेलू उत्पाद से जोड़ता है। राज्य की पर्यावरणीय सेवाओं के मूल्य के सापेक्ष भारत सरकार या अन्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मौद्रिक आंकलन के अनुसार प्रतिपूर्ति मांग की जायेगी, जिससे प्राप्त होने वाली धनराशि जहाँ एक ओर उत्तराखण्ड के लिए और बड़ा निवेश का मार्ग प्रशस्त करेगी वहीं दूसरी ओर पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को और अधिक जागरूक और जिम्मेदार करेगी। यही नहीं सकल पर्यावरण उत्पाद स्थानीय पर्यावरण की गुणवत्ता को बढ़ाता है, जितनी अधिक पर्यावरण संरक्षण सम्बन्धी गतिविधियाँ होंगी उतना अधिक पर्यावरण संरक्षित होगा एवं उतनी ही अधिक पर्यावरणीय सेवाओं की लागत होगी।

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में प्रसन्नता सूचकांक, गरीबी सूचकांक की तरह, जीईओ सूचकांक विकसित किया गया है। हम सभी जानते हैं कि सभी विकासपरक गतिविधियां हमारे पारिस्थितिकी तंत्र और पर्यावरण पर अपना प्रभाव डालती हैं जो पानी की गुणवत्ता, वायु गुणवत्ता, मिट्टी की उर्वरता, वन आवरण आदि के संदर्भ में व्यापक रूप से परिलक्षित होती हैं। जीईपी सूचकांक आंकलन के लिए चार अलग-अलग सूचकांकों, अर्थात वायु, जल, मृदा और वन को मिलाकर, जीईपी सूचकांक समीकरण विकसित की गई है। विभिन्न विकास परक योजनाओं, औद्योगिक प्रक्रियाओं व सरकार द्वारा बनाये गये नियमों इत्यादि के अनुपालन का जो परिणाम है वह सकल रूप से हमारी स्थानीय पर्यावरण गुणवत्ता पर देखने को मिलता है।

उन्होंने कहा कि वर्ष 2010-11 में राज्य सरकार द्वारा राज्य के लिए ग्रीन बोनस की परिकल्पना के साथ 2021 में राज्य की जीडीपी में पर्यावरण सेवाओं के मूल्य और पर्यावरण को हुए नुकसान की लागत के अंतर को जोड़कर सकल पर्यावरण उत्पाद की परिभाषा को अधिसूचित किया था। इसके अतिरिक्त 2021 की अधिसूचना में राज्य सरकार द्वारा जीईपी के लिए मूल्यांकन तंत्र के व्यापक विकास के लिए भी प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए सकल पर्यावरण उत्पाद को राज्य की जीडीपी के साथ कैसे जोड़ा जाए इस पर भी कार्य योजना तैयार की गई है।

By admin

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