देहरादून। उत्तराखण्ड पेयजल निगम को कुछ अधिकारियों ने मनमानी करने का अड्डा बना दिया है। जिसका उदाहरण है कि इंजीनियर कपिल सिंह का अधीक्षण अभियन्ता निर्माण मण्डल गोपेश्वर से महाप्रबन्धक निर्माण विगं हल्द्वानी स्थानान्तरण होने के पश्चात भी निर्माण मण्डल गोपेश्वर में अनाधिकृत रूप से निविदा को स्वीकृति देना है। जिसकों सचिव पेयजल ने भी जनहित में बताते हुए सही बताया है जबकि कोई भी अधिकारी इस तरह के कार्य कर नहीं सकता है तो सचिव इंजीनियर कपिल सिंह पर इतने मेहरबान क्यों हो रहे है कि उनके गलत कार्य को भी सही ठहराया गया है।
इंजीनियर कपिल सिंह ने चहेतों को लाभ पहंचाने के लिए एक जनपद ने दूसरे जनपद में स्थानान्तरण के बाद भी निविदा को स्वीकृति दी गई। जिस पर उनके स्थान पर आए तत्कालीन अधीक्षण अभियन्ता इंजीनियर दीपक मलिक ने कार्यालय के सभी अधिकारियों की बैठक कर लिखित में यह जवाब मांगा कि क्या स्थानांतरित किए गए कपिल सिंह को मुख्यालय या शासन स्तर से कोई लेटर जारी किया जिससे की उन्होंन स्थानांतरित होने के बाद निविदा जारी करने के लिए अधिकृत किया गया हो लेकिन अधीक्षण अभियन्ता निर्माण मण्डल में ऐसा कोई पत्र प्राप्त नहीं हुआ। जिसके लिए अधीक्षण अभियन्ता दीपक मलिक ने अनाधिकृत निविदा के लिए प्रबन्ध निदेशक एससी पंत व वित्ती निदेशक जयपाल सिंह तोमर को पत्र लिखा। मामाल संज्ञान में आने के बाद प्रबन्ध निदेशक एससी पंत व वित्ती निदेशक जयपाल सिंह तोमर ने मामले को घोर अनियमितता मानते हुए शासन स्तर पर कार्रवाई के लिए लिखा लेकिन न जाने क्यों सचिव पेयजल अरविंद सिंह हयांकी को यह कोई अनियमितता नहीं लगी और कार्रवाई के लिए लिख गए पत्र का निरस्त करने के लिए निर्देशित किया। सवाल यह उठता है कि पेयजल सचिव ने मामले की जांच तक न कराते हुए सीधे तौर पर निरस्त कर दिया और इंजीनियर कपिल सिंह की अनियमितता को सही ठहरा दिया।